/lotpot/media/media_files/2024/11/18/asli-nakli-baal-kahani-1.jpg)
बाल कहानी : असली-नकली- दरवाजे पर दस्तक हुई। गौरी दरवाजा खोलने में हिचकिचा रही थी क्योंकि वो घर में अकेली थी। उसका पति शंकर घर से कहीं बाहर गया था और तीन दिन बाद वापिस आने वाला था। वो गौरी को समझा कर गया था कि वो घर में अकेली होगी इसलिए सावधानी से रहे।
दरवाजे पर फिर दस्तक हुई। साथ ही आवाज आई, ‘शंकर, दरवाजा खोलो’। गौरी समझ गई कि जरूर कोई उसके पति का जानकार होगा। उसने दरवाजा खोला तो देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति हाथ में एक पैकेट ले कर खड़े हुए थे।
बुजुर्ग बोले, ‘तुम मुझे नहीं पहचानती। मैं शंकर का चाचा हूं। मैं लगभग बीस साल पहले यह शहर छोड़ कर मुम्बई चला गया था तब से वहीं था। पर अब मैं बूढ़ा हो गया हूं और अपने शहर और अपने लोगों में वापिस आना चाहता हूं। तुम शायद शंकर की पत्नी हो। वह जब छोटा था मैं तभी चला गया था। तुम मेरे बारे में कुछ नहीं जानती होगी।’
गौरी बोली, ‘शंकर तो घर पर नहीं है। आप कृप्या करके तीन दिन बाद आईयेगा।’
बुजुर्ग बोले, ‘मैं तुम्हारी परेशानी समझता हूं। पर मैं कोई अजनबी नहीं हूं लेकिन मैं तुम पर कोई जोर नहीं डालूंगा। मैं शंकर और उसके परिवार के लिए कुछ भेंट लाया था। मैं उन्हें यहीं छोड़े जा रहा हूं। जब तक शंकर वापिस नहीं आता मैं पास के किसी होटल में रूक जांऊगा।’
गौरी दुविधा में फंस गई। उनके शहर में कोई होटल नहीं था। उसे चिंता थी कि पता नहीं शकर क्या सोचेगा जब उसे पता चलेगा कि मैनें उसके चाचा जी को घर में नहीं घुसने दिया।
बुजुर्ग ने अपना पैकेट खोला। उसमें गौरी के लिए साड़ी थी, शंकर के लिए कुछ कपड़े थे और कुछ जेवर भी थे। वे बोले, ये सब तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए। मैं अपनी सारी सम्पत्ति शंकर के नाम करना चाहता हूं क्योंकि मेरा और कोई रिश्तेदार नहीं है।’
अब तो गौरी को उन पर विश्वास हो गया। उसने उन्हें अंदर बुला लिया और उनसे निवेदन किया कि जब तक शंकर नहीं आता वे वहीं रहें। पहले तो बुजुर्ग ने मना किया किन्तु जब गौरी जिद करने लगी तो वे मान गये।
गौरी ने उनकी खूब खातिरदारी की। उन्हें अपने कमरे में सुला कर गौरी खुद रसोईघर में सो गई। अगले दिन जब उसकी नींद खुली तो चाचा जी कहीं नजर नहीं आये। गौरी ने इधर-उधर देखा तो यह देखकर हैरान रह गई कि वह व्यक्ति तो उनकी सारी कीमती चीजें ले कर रफू चक्कर हो गया है। वो तो एक चोर था जो चाचा बनकर उनका सामान ले कर भाग गया।
कुछ महीनों बाद फिर से ऐसा ही कुछ हुआ। शंकर कहीं बाहर गया हुआ था और एक बुजुर्ग फिर से आये और बोले ‘मैं शंकर का चाचा हूं और विदेश से आया हूं।’ लेकिन अब की बार गौरी समझदार हो गई थी। उसने उन्हें अन्दर बुलाया, खुद बाहर गई और बाहर से दरवाजा बन्द कर दिया। फिर वह पड़ोस के कुछ लोगों को बुला कर लाई और उन्हे सारी कहानी बताई। बस फिर क्या था सब ने मिल कर बुजुर्ग की खूब पिटाई की। वे बार-बार कहते रहें कि वे सच में शंकर के चाचा हैं पर किसी ने उनकी एक नहीं सुनी। अंत में उस व्यक्ति ने एक कागज अन्दर फेंका और अपना सामान लेकर वहां से अपनी जान बचा कर भागा।
जब शंकर वापिस आया तो गौरी ने उसे पूरा किस्सा सुनाया। शंकर पहले तो बहुत खुश हुआ। किन्तु जब उसने वह कागज खोल कर पढ़ा तो उसके हाथों के तोतें उड़ गये। उस पर लिखा था, ‘प्रिय भतीजे शंकर, मै साऊथ अफ्रीका चला गया था। वहां भाग्य ने मेरा साथ दिया और मैं अमीर हो गया। लेकिन अब मैं सन्यास लेना चाहता था। मेरा कोई और रिश्तेदार नहीं है, इसलिए सन्यास ले कर जंगल में जाने से पहले मैं अपना सब कुछ तुम्हें देना चाहता था बचपन में जब मुझे जरूरत थी विदेश जाने की तब तुम्हारे पिता जी ने ही मेरी मदद की थी। लेकिन अब तुम मुझे कभी नहीं मिल पाओगे। क्योंकि अब मैं सन्यास लेकर जंगल में जा रहा हूं। मैं अब तुम्हारी इस दुनिया में कभी वापिस नहीं आऊंगा।’
पत्र शंकर के हाथ से छूट कर जमीन पर गिर पड़ा और साथ ही शंकर भी।
शंकर पत्र पढ़कर अवाक् रह गया। उसके चेहरे पर चिंता और पछतावे की लकीरें साफ नजर आ रही थीं। उसने गौरी से कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके दिल में एक अजीब सा दर्द उठ रहा था। उसने सोचा, "कहीं मैंने अपनी जल्दबाजी और अविश्वास में अपनी किस्मत ही न खो दी हो?"
गौरी, जो पहले खुद को समझदार मानकर खुश हो रही थी, अब शंकर की हालत देखकर घबरा गई। उसने पूछा, "क्या हुआ शंकर? इस पत्र में ऐसा क्या लिखा है?"
शंकर ने पत्र गौरी को पकड़ा दिया और कहा, "गौरी, वह व्यक्ति वास्तव में मेरे चाचा थे। उन्होंने हमें अपनी सारी संपत्ति देने का वादा किया था, लेकिन हमने उन्हें पहचानने में गलती कर दी। हम उन्हें चोर समझ बैठे और अब वह हमें हमेशा के लिए छोड़कर चले गए।"
गौरी के चेहरे पर भी गहरी उदासी छा गई। उसने कहा, "शायद हमें पहले उन्हें ठीक से सुनना चाहिए था। मैंने जल्दबाजी में फैसला लिया और उनकी असलियत को परखने की कोशिश भी नहीं की।"
शंकर ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "अब पछताने का कोई फायदा नहीं है, गौरी। हमने एक अच्छा मौका खो दिया, और शायद एक सच्चे रिश्ते को भी। हमें अब से सिख लेना चाहिए कि बिना सच जाने किसी पर फैसला नहीं करना चाहिए।"
गौरी ने शंकर का हाथ थामते हुए कहा, "हाँ, अब हम आगे से ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे।"
इस घटना ने दोनों को एक सबक सिखा दिया था - कभी भी बिना सोच-समझे किसी पर शक नहीं करना चाहिए। हो सकता है कि असली चोर कोई और हो, और सच्चा रिश्तेदार हमारी आँखों के सामने ही छूट जाए।
शंकर और गौरी ने इस बात का संकल्प लिया कि वे अब से सभी को खुले दिल और विवेकपूर्ण तरीके से परखेंगे, ताकि फिर कभी ऐसी गलती न हो।
कहानी से सीख :
इस कहानी से हमें यह महत्वपूर्ण सीख मिलती है कि असली और नकली लोगों की पहचान करना बेहद जरूरी है। कई बार हम अपनी भावनाओं और भरोसे के कारण गलत निर्णय ले लेते हैं, जिससे हमें भारी नुकसान उठाना पड़ता है। गौरी ने पहली बार बिना सोचे-समझे एक अजनबी पर विश्वास किया, जो चाचा के भेष में एक चोर निकला। लेकिन दूसरी बार, उसने समझदारी दिखाई और किसी भी अजनबी पर भरोसा करने से पहले सतर्क रही।
बाल कहानी यहाँ और भी हैं :-
Moral Story : आँख की बाती: सच्चे उजाले की कहानी
Moral Story : गौतम बुद्ध और नीरव का अनमोल उपहार
Moral Story : रोनक और उसका ड्रोन
Moral Story : ईमानदारी का हकदार